भीड़ में इकट्ठा न हों, मस्जिद में न जाएं, वबा के वक्त घर पर ही नमाज पढ़ें, हमारी मजहबी किताबों में जिक्र और ताकीद की गई: सलामतुल्लाह
सेंट्रल हज कमेटी के पूर्व चेयरमैन हाजी सलामतुल्लाह ने मुस्लिम समुदाय के लोग से अपील की है कि वे वबा की इस घड़ी में कुरान और सुन्नत की रोशनी में काम करें, reports रिज़वाना.
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उन्होंने कहा, ‘‘बुखारी और मुस्लिम की हदीस में ऐसी कई मिसालें हैं, जिन पर अमल करना चाहिए क्योंकि इस्लाम में जान बचाने पर जोर दिया गया है. यही शरई तरीका भी है.’’
उन्होंने बताया कि जब यह पता चल जाए कि किसी शख्स को फैलने वाली या संक्रामक बीमारी है तो वह घर पर बैठ जाए. किसी से न मिले. सब्र करे. यही नहीं, एक हदीस यह भी है कि अगर संक्रामक बीमारी है तो इलाज कराएं. सलामतुल्लाह कहते हैं, ‘‘हमारे पैगंबर ने साफ कहा कि फौरन इलाज किया करो.’’ यानी सिर्फ घर में न बैठो, उसे ठीक करने की कोशिश करो, इलाज कराओ. अल्लाह ने जो किस्मत में लिख दिया है, वह तो होगा लेकिन अपनी तरफ से सब्र और कोशिश करो.
यहां अहम बात यह है कि यह सब करने के बावजूद वबा के वक्त किसी शख्स की मौत होती है तो उसे शहीद का दर्जा मिलता है. शहीद यानी उस शख्स का दम ईमान पर निकला है, उसके मगफिरत की गारंटी है. लेकिन यह ध्यान रखना चाहिए कि पहले वह हदीस की बातें माने. बीमारी होने पर घर से न निकले, सेहतमंद लोगों के सामने पेश न हो और अपना इलाज कराए.
सलामतुल्लाह कहते हैं कि चूंकि शहीदों को बिना गुसुल कराए कब्र में रखा जाता है, लिहाजा इसका पालन जरूर करें. बेजा नहलाने की कोशिश न करें. इससे कोविड-19 जैसी संक्रामक बीमारी शहीद के संपर्क में आने वाले दूसरे लोगों को लग जाएगी और बाद में उनकी तबियत खराब हो जाएगी. लिहाजा, ऐसी हरकतों से बचें.
यह बात अहम इसलिए है क्योंकि कोविड का शक होने पर लोग टेस्ट करा रहे हैं, रिपोर्ट आने से पहले ही बीमार का दम निकल जा रहा है, शहरों में ऐसे लोगों की काफी तादाद है. गांवों और छोटे कस्बों में तो किसी तरह के टेस्ट कराने की सुविधा तो दूर पैरासीटामोल जैसी बुनियादी दवाएं भी नहीं मिल रही हैं. ऐसे में बीमारी के लक्षण को ध्यान में रखकर तीमारदार और रिश्तेदार फैसला करें. कई बैंको के पूर्व निदेशक रहे सलामतुल्लाह का कहना है, ‘‘जबरन नहलाने और शहीदों को चूमने या छूने की कोशिश न करें. कोविड प्रोटोकॉल को फॉलो करें. अल्लाह मगफिरत करेगा.’’
सलामतुल्लाह बताते हैं कि एक शख्स हमारे नबी से बैत करने आया. उसे मुसाफा करना या हाथ मिलाना था. उन्हें पता चला कि उसके हाथ में कोई संक्रामक बीमारी है. उन्होंने उनसे कहलवा दिया कि आपसे बैत हुआ मान लीजिए और चले जाइए. ऐसा ही हुआ. इस्लाम में हाथ मिलाना सुन्नत है, लेकिन संक्रामक बीमारी के मामले में ऐसा न करना भी सुन्नत है. लिहाजा, लोगों को समझना चाहिए कि हमें कब क्या और कैसे करना चाहिए.
वे बताते हैं कि लोग तरावीह और जुमा के वक्त मस्जिद में ज्यादा जाते हैं. लेकिन उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए. एक आदमी सैकड़ों और हजारों व्यक्ति को बीमार कर देता है. संक्रमित होने के तीन-चार दिन बाद ही पता चल पाता है कि किसी शख्स को कोविड है. लेकिन इस दौरान वह लोगों को संक्रमित कर सकता है. ऐसे में मस्जिद में इमाम, मुअज्जिन और इंतजामिया कमेटी के एक-दो लोग से सामाजिक दूरी बनाते हुए, जमात में नमाज पढ़ें. बाकी सारे लोगों को घर पर ही नमाज पढ़ने के लिए कहें. मस्जिद को कोविड फैलाने की जगह न बनाएं.
सलामतुल्लाह कहते हैं, ‘‘मुस्लिम समुदाय के बड़े-बुजुर्ग और मस्जिदों से ऐलान कराएं कि लोग घर में ही रहें. सब्र करें और अल्लाह से दुआ करें. उनको भी उतना ही सवाब होगा.’’ वे कहते हैं कि पिछले साल स्ट्रेन कमजोर था, इतना जानलेवा नहीं था फिर भी लॉकडाउन की वजह से मस्जिदों में लोग नहीं जा रहे थे, इमाम भी इसका ऐलान कर रहे थे. इस बार का स्ट्रेन ज्यादा खतरनाक और जानलेवा है, फिर भी लॉकडाउन न होने की वजह से कुछ लोग मस्जिद में जा रहे हैं. उन्होंने अपील की है कि हमें मस्जिद में नमाज पढ़ने की जिद छोड़कर घर में ही नमाज अदा करनी है और इसके लिए मस्जिदों के इमाम ऐलान करें. आखिर, शरियत में भी पहले जान बचाने पर जोर है. और फिर हदीस में साफ है कि घर पर नमाज अदा करने से उतना ही सवाब होगा.
मुस्लिम समुदाय से इस तरह की अपील हर जगह की जा रही है और इसका असर दिख रहा है. कुछ जगहों पर लोग बिल्कुल नहीं निकल रहे हैं, कुछ जगहों पर इक्के-दुक्के लोग जा रहे हैं और उनसे कहा जा रहा है कि वे भी न जाएं.